मेरा स्कूल
मुझे अच्छे से याद है, जब माँ ने मुझे बुलाया और पढ़ने बैठाया। मुझे वो बहुत ही नई चीज़ लगी और साथ ही दिलचस्प भी। मुझे याद इसलिए है क्योंकि, मैं उस समय आठ साल की थी। मुझे नया इसलिए लगा क्योंकि ये कुछ ऐसा था जो और सभी चीज़ें जो मैं दिन भर में करती थी उन सभी चीजों से अलग था, और दिलचस्प इसलिए क्योंकि (जिसके पीछे मैं मम्मी को credit देती हूँ) उन्होने कुछ ऐसे तरीके से सिखाने की शुरुआत की जो मुझे अच्छा लगा। उन्होने मुझे पहले मेरा नाम लिखना सिखाया। मुझे याद है , मैंने सोचा था की “ अच्छा तिना ऐसे लिखा जाता है” ।
शुरुआती दौर में माँ मुझे चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकि, पंचतंत्र, जैसी कहानियाँ पढ़ कर सुनाया करती और साथ ही साथ बहुत ही दिलचस्प तरीके से अक्षर ज्ञान भी देती जाती। उदाहरण के तौर पर मेरे नाम को ही लीजिये। “तिना” में “त” है जो एक लकीर और उससे सटी हुई उल्टी छोटी कटोरी से बना है , ऊपर एक और कटोरी लगा दी तो “ति” हो गया। “ना” में पहले “न” जिसे लिखने के लिए पहले एक लकीर और फिर एक और लकीर पर ये horizontal है और पहली वाली से सटी हुई है फिर एक छोटी सी कटोरी जो एकदम सिरे पर लगी है।
इसे सीखने मे मुझे ज़्यादा से ज़्यादा सात से चौदह दिन लगा था, और साथ ही साथ मम्मी के पीठ की सवारी करते हुये जो मुझे माँ अलग अलग कहानियाँ सुनती थी, शायद इसके कारण मैं और जल्दी सीख पाई।
मुझे बहुत अच्छे से याद है , फिर तो मैं ढ़ेर सारी कहानियों की किताबें खरीद लाती और दिन भर पढ़ती रहती।
मुझे थोड़ी दिक्कत संयुक्त अक्षर पढ़ने में लगी थी, पर वो भी कुछ घंटों में clear हो गई। पापा ने मुझे कुछ बताया (मुझे याद नहीं की उन्होने कैसे बताया था) और वो एकदम clear हो गया था।
फिर थोड़ा ओर पढ़ना जान लिया तो दीदी ने मुझे थोड़ी और पर लंबी कहानियों की किताबें देना शुरू किया जैसे, गुलिवर की यात्रायेँ, ख़जाने की खोज में, 80 दिन मे दुनिया की सैर, adventures of Tintin, Sherlock Holms इत्यादि ।
फिर तो क्या था , मुझे पढ़ने मे इतना मज़ा आता की मैं एक दिन मे दो से तीन किताबें खत्म करती। फिर जब मैंने स्कूली किताबों को पढ़ना शुरू किया तो मुझे इतिहास मे हमेशा से रुचि रही । मैं 7वीं, 8वीं और फिर कभी मन किया तो 10वीं की इतिहास की किताबें उठा लेती और ख़त्म कर डालती, इस बात की परवाह किए बिना की मुझे ईसवीं और शताब्दी याद भी है या नहीं। मुझे इस बात ने इतिहास पढ़ने में और उत्सुकता जगाई कि मेरे दादा जी इतिहास के professor थे।
मुझे गणित क्यों पसंद था और मुझे किसने पढ़ाना शुरू किया मुझे याद नहीं , शायद कपिल पूर्वे (जिन्होने मुझे और दीदी को एक समय पढ़ाया था) ने। पर जब मैं प्रॉब्लेम्स को solve करती और उसका answer मिल जाता तो मुझे बड़ी खुशी होती और ये मुझे और ज़्यादा से ज़्यादा करने के लिए प्रोत्साहित करता।
उन छोटी किताबों की जगह अब बड़े उपन्यासों और गाँधी साहित्य ने ले ली है। मैं अपने माँ, बाबूजी, और दीदी तीनों कि शुक्रगुजार हूँ , जिनके कारण मैं इतने अच्छे और ज्ञानवर्धक किताबें पढ़ पाती हूँ।
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