Tuesday 1 April 2014

पिछले साल की याद

पिछले साल की याद 



नया साल!!!
लो आ गया नया साल,
जैसे पलक झपकी और आया ये नया साल,
जैसे एक सांस की तरह ख़त्म हुआ वो पुराना साल।
अंदर जाती सांस जैसा ठंडा था वो,
बाहर आती सांस जैसा गर्म भी था।
और जैसे नींद खुली हो बस,
सपना टूटा हो बस,
वैसा था ये पुराना साल।
चमचमाती रौशनी में ख़त्म हुआ,
बड़े ज़ोर के शोर साथ ख़त्म हुआ वो,
जैसे कुछ खास बड़ा महत्वपूर्ण ख़त्म हुआ हो।
पर,
उस चमचमाती रौशनी के अंधेरे में भी,
फिर वही चेहरा दिखता है,
फिर वही आँखें घूरतीं हैं,
और फिर वही शर्म से मेरी आँखें झुक जाती हैं।
इस बार भी,
चेहरा कहता है, समझता है।
बस दस रुपये की अगरबत्ती है बेटी, खरीद लो,
आज रात का कुछ इंतज़ाम हो जाने दो।
मैं उसकी आँखों मे देखती हूँ,
मन ही मन कुछ बुदबुदाती हूँ,
और आगे बढ़ जाती हूँ।
फिर, अचानक
पीछे देखती हूँ, ठहर जाती हूँ।
वहीं खड़ी, आगे वाले नए साल को देखती हूँ,
आँखें मिचकाती हूँ।
और पीछे वाले हर एक साल को,
बूंद बूंद गिनती हूँ,
पल पल का हिसाब करती हूँ,
और हर एक बिन्दु पर से लकीर गुजरती हूँ,
जैसे ये ज़िंदगी ही बस इन बिन्दुओं से गुजरती हो,
हर वो बिन्दु, जो हर एक दिन था, हर एक नियति थी,
ये नीयती जो इतनी महत्वपूर्ण थी,
बस एक बिन्दु ही तो थी।
और जब मैंने पीछे देखा, तो पाया,
ये बिन्दु ही तो थे जिन्होने तुम्हारी नियति बनाई।
तो मैं इसका मुआयना करती हूँ।
और सर झुका बिना किसी फैसले के,
नए साल का स्वागत करती हूँ।
तभी अचानक।
कोई बहुत दूर मेरा नाम पुकारता है,
नज़र आता है,
मैं सर उठा उसे देखती हूँ,
पहचानने की कोशिश करती हूँ।
और बड़े आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ जाती हूँ।