होली के रंगों की तरह,
बदलती है ज़िंदगी रंग,
बदलते हैं आप रंग,
रंगो का अजूबा एक,
रंग में रंग मिला दो तो अलग ही रंग दिखेगा,
जैसे अबतक छल रहा था आपको,
ऐसे ही रंगों से बने हैं हम,
ऐसे ही रंग बदलते हैं हम,
बदलती है ये कुदरत भी अपने रंग,
कभी सुर्ख लाल, तो कभी गाढ़ा हरा,
कभी शुद्ध सफ़ेद तो कभी अंधेरे से काला,
जीतने रंग, उतने ही उनके मतलब,
हर मतलब में छुपी एक इच्छा, एक आशा,
एक कोशिश, एक दृढ़ता,
और उन रंगो से बने आप,
उन रंगो में ढले आप,
कभी उस रंग को खोजते भी हैं आप,
कभी उस रंग में रंगते हैं आप,
तो,
इन रंगों में रंगना सीखो,
इन रंगो में से अपना रंग पहचानो,
इन रंगों से अपनी पहचान को जानो,
और देखो कौन सा रंग है तुम्हारा,
और किस रंग में ढलना
चाहते हो तुम
सरहनीय काव्य रचना ,मूल मानव प्रक्रती से प्रेरित एक उत्कृष्ट काव्य..भिन्न रंगो की भिन्न भाव भंगीमा और भिन्न मनुष्यो के भिन्न रंगो का समुचित समागम, संपूर्ण रचना की अति उत्तम एवम उत्कृष्ट पंक्ति "बदलते हैं आप रंग,"
ReplyDeleteDhanyavad
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