आज शाम एक अजीब घटना घटी। मम्मी के कहने पर मैं बाज़ार के लिए तैयार हुई, थैला उठाया, लिस्ट बनाई की कौन सी चीज़ें लेनी हैं मुझे। सब्जी, सरसों तेल, और खोबर (सूखा नारियल)। लिस्ट बना कर और ज़रूरत के हिसाब से पैसे ले कर मैं निकली। पटना की पसीने वाली गर्मी और ऊपर से जहां तहां बिखरी हुई गंदगी के कारण वैसे ही दिमाग में खलल रहता है। अब तक तो सब ठीक चल रहा था मैंने केले वाले से केले का दाम पूछा हाजीपुर के केले छोटे होते है पर बड़े मीठे होते है। 16 रुपये सुन मैं चौंक गई “इतने से केलों का दाम 16 रुपये? यह तो नाइंसाफी है भाई।
किसी तरह बड़ी मुस्तैदी के साथ अपने कदम बढ़ाते हुये मैं आगे बढ़ाने लगी। पता नहीं कहाँ किस चीज़ के ऊपर पैर पड़ जाए। जगह जगह सब्जी वाले खड़े थे, और खरीददार खरीदी कर रहे थे। एक जगह मैं अच्छी सब्जियाँ देख रुक गई। सब का दाम पूछा “भिंडी कितने की है भैया , धनिया पत्ता कैसे दिये हैं आधा किलों परवल दे दीजिये ” इत्यादि। उस भीड़ भरी दुकान पर मैंने किसी तरह सब्जी तौलने को दी और मन ही मन हिसाब कर लिया। “50 रुपये हो रहे हैं ” सोच, मैंने सब्जी ली और पैसे दे कर मुड़ गई। मुझे किराने की दुकान भी जाना था। वहाँ पहुंची हि थी की एकाएक पीछे से किसी ने अचानक बड़ी रुक्षता से कहा “परवल का पइसा नहीं दीं है आप, परवल का पाइसा नहीं देंगी का ” मैं पीछे मुड़ी तो देखा उसी सब्जी वाले दुकान का एक लड़का मेरे पीछे खड़ा मेरी तरफ शक की निगाहों से देखते हुये बोल रहा था। मैंने शांति से कहा “दे तो दिये हैं, वहीं हिसाब किए थे ना ” । “ऊ सब हम नहीं जानते हैं दुकान वाला कर रहा है की आप पइसा कम दीं हैं सो हमको पइसा दीजिये हम जाते हैं” उसकी आवाज़ में बेशर्मी देख मुझे गुस्सा आया । मैंने कहा “रुको हम चलते हैं, यहाँ खरीद लें”। पर वो तैयार ही नहीं था। मुझे अपना काम जबरन छोड़ उसके साथ जाना पड़ा। वहाँ जाते ही मैंने पूछा “क्या हुआ, उस समय कितना पैसा दिये हैं हम, आपको याद नहीं है ”? मैंने उस लड़के से जिसकी उम्र कुछ 17 18 साल रही होगी पूछा। उसने कहा आपने पूरा पैसा नहीं दिया है । अचानक देखा उधर से एक उम्र में बड़ा आदमी ज़ोर से बोलने लगा "कितना हुआ है , आपको हिसाब नहीं आता है क्या"। उसकी आँखों में और आवाज़ में बेखौफ बेशर्मी देख मुझे गुस्सा आया । तीनों दुकानदार जैसे मेरे ऊपर बरस पड़े। उसे लग रहा था की मैं लड़की हूँ इसलिए कुछ बोलुंगी नहीं और उन्हे चुपचाप पैसे दे दूँगी। पर मैंने अपनी आवाज़ चढ़ाई और पूरे बिहारी tone में कहना शुरू किया “नौटंकी बंद कीजिये आप, कुछ बोले नहीं हैं इसलिए बकवास करेंगे आप”( यहाँ झगड़ते समय भी "आप" शब्द का प्रयोग अनिवार्य है, कम से कम इसी कारण झगड़ते समय शब्दों में थोड़ी शिष्टता दिखती है )। “हिसाब करना हमको नहीं, आपको नहीं आता है, कितना दिये है तौल लीजिये” उसकी तरफ उससे ली हुई सब्जियाँ लगभग फेंकते हुये मैंने कहा। उसे हिसाब कर सुनाया, तबतक दूसरा खरीददार भी मेरे पक्ष में बोलने लगा। वो आदमी अब भी मेरी तरफ घूरे जा रहा था पर अब उसके पास कोई बात नहीं बची थी बोलने को और मैंने उसे अच्छा खासा सुना भी दिया था। मुझे लगा की मेरे ऊपर कहीं ये इल्ज़ाम न लगा दें इसलिए मैं ज़ोर से बोल रही थी। मुझे अगल बगल के लोग भी देखने लगे। वहाँ खड़ी औरतें मुझे आखेँ फाड़ फाड़ के देखे जा रही थीं और वो दुकान वाला भी। उनका मुह बंद हो गया, मैंने अपना सामान उठाया और वहाँ से चल पड़ी।
महसूस किया की मेरे लड़की होने का मतलब वह ये निकाल रहे थे की ये तो कुछ बोलेगी नहीं। इसे कैसे भी दमसा लो ये अपना सर नीचे किए सुन लेगी। मुझे बुरा लगा और लगा की मैंने अच्छा ही किया जो उनसे ज़ोर से डाँटा। उन्हे दिखाना चाहती थी की लड़की से कैसे भी बात कर लोगे तो चल जाएगा ऐसा नहीं है। ऐसा क्यों है, की ऐसी घटना जो हो सकता है की पाठकों को बहुत ही साधारण लगे आज भी होती हैं। उस दुकानदार का यह सोचना की मैं लड़की हूँ इसलिए ज़ोर से आँखें निकाल कर बोल देगा तो मैं चुप हो सुनती रहूँगी क्या यह नहीं दर्शाता की इस समाज में लड़कियों को अगर छोटे से छोटा काम भी करना है तो किसी पुरुष का हाथ थामने की ज़रूरत महसूस कराई जाती है। यह मैं कहीं और तो नहीं देखती। फिर ये यहीं क्यों। यह चिंताजनक बात है।
मैंने देखा मेरे दोनों कान गरम हो गए और उनसे गरमी निकलने लगी। यह देख मुझे हंसी आ गई । बड़ी ही अजीब अवस्था थी हंसी के साथ गुस्से का मिश्रण था। ज़्यादातर मैं जब गुस्साती हूँ तो उस इंसान पर बहुत गुस्साती हूँ, पर बाद में, वो भी अपने दिमाग में, मन ही मन।
मैंने अपनी दूसरी खरीददारियाँ की और पापा को यह घटना सुनाने, किसी तरह अपनी हंसी दबाये, मैंने घर की तरफ अपने कदम बढ़ा दिये।
बहुत बढ़िया..इससे वहाँ खड़ी महिलाओं को भी आगे के लिए प्रेरणा अवश्य मिली होगी.
ReplyDeleteabe tu kya kya karti hai???
ReplyDelete"मैंने देखा मेरे दोनों कान गरम हो गए और उनसे गरमी निकलने लगी। " these words are interesting, how did u saw hot ears :P
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