लहरें आती जाती हैं।
गहरे सागर से निकलती
ये तेज़ तर्रार लहरें
बिलकुल मेरे विचारों जैसी हैं।
उफान भरे मेरे मन में आती तो
हैं।
पर शांत हो चली भी जाती हैं।
ये लहरें जो आती हैं,
ये लहरें जो जाती हैं।
बुलबुले बनाती हैं
और इस नीयती के साथ की एक दिन
तो फूट ही जाना है।
ठंडी हो मुझे सताती हैं।
बिलकुल नमकीन, जैसे
ज़िंदगी ही हों।
की कोई स्वाद ले तो मुह बिचकाए।
पर स्वाद लेने का लालच भी न छोड़
पाये।
मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसका
ले जातीं हैं।
हर वो एक कण जिसने मिलकर ये पल
बनाए हैं।
धीरे धीरे बहा ले जातीं हैं।
ये बस तूफान नहीं लाती हैं,
ये तूफान के पहले की खामोशी,
या की तूफान के बाद की गाथा
बयान कर जाती है।
ये जो लहरें आती हैं,
ये जो लहरें जाती हैं।
ऐसे करामात दिखतीं हैं,
देखो तो, तुम्हारे
पीछे की रेत पर ,
तुम्हारे ही अस्तित्व की छाप को
बहा ले जाती है।
मिटा डालती है,
तुम फिर चलते हो आगे बढ़ते हो,
वो फिर तुम्हें मिटाती है,
मेरी उत्कंठा, मेरी बैचनी
है,
मेरे अस्तित्व को ज़िंदा रखने
की।
मेरे अंदर उफान भरती ये लहरें,
कहीं मुझे ही तो बहा नहीं ले
जाएंगी,
इन लहरों से लड़ना सीखो, झगड़ना सीखो,
अपने पैरों की छाप के मीट जाने
का मलाल न होने दो,
आगे बढ़ो, क्योंकि एक
और छाप तुम डालोगे,
क्योंकि देखो तो तुम आगे ही
बढ़ते जाओगे।
क्योंकि तुम्हारे पैरों में
इतनी ताकत है,
की तुम अपनी छाप छोड़ सको,
इसकी परवाह मत करो की पीछे का
क्या होगा,
लहरों का आना तुम्हारे ऊपर नहीं
उनका जाना भी तुम्हारे ऊपर नहीं
बस, आगे बढ़ते
जाना तुम्हारे ऊपर है,
हर उस कण के साथ बह जाना भी
तुम्हारे ही ऊपर है।
हर उस एक कण में बस जाना भी
तुम्हारे ऊपर है।
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