करीब चार साल हो गए जब मैं trekking पर गई थी। दीदी के साथ पहली बार जा रही थी। यूथ हॉस्टल असोसिएशन ऑफ इंडिया एक ऐसा organization है जो बड़े उम्दा किस्म के treks निकालता है और यह वाला जिसमें हम जा रहे थे वो उनमे से एक था। हमे कुल्लू से होते हुये कसौल जाना था। रात भर के बस के सफर के बाद जिसमें कई बाद नींद टूटती है। हम हैरान परेशान कुल्लू के बस स्टैंड पर उतरे ।
“कसौल”! कसौल एक ऐसी जगह है जहां आपको अलग अलग देशों के इंसान नशे में झूमते हुये नज़र आएंगे ज़्यादातर जर्मनी और फ्रांस के। शिवा मामा, शिवा बाबा और न जाने इसी प्रकार के कितने ही “spiritual feeling” देने वाले अजीबोगरीब नाम के cafes आपको जहां तहां दिखाई देंगे जिनके अंदर आप बाहर से साफ साफ दम मारो दम के दृश्य देख सकते हैं। मेरे लिए यह बड़े ही चोंकाने वाले दृश्य थे। पर इन सबों से विपरीत YHAI का base camp शांत और सोम्य प्रतीत होता है।
पहले दिन पहुँचने पर आप बहुत कुछ देखते हैं, नए लोगों से मिलते हैं। देश भर के लोग वहाँ आते है। बंगलोरे, चेन्नई, गुजरात, महाराष्ट्र और न जाने कहाँ कहाँ के। इस कैंप की खास बात होती है कि आप बहुत से लोगों से मिलते हैं, दोस्त बनाते है, ऐसे दोस्त जो आपके साथ अगले 9 दिनो तक आपके उस अनोखे और साहसिक यात्रा के भागीदारी होते हैं।
सारपास करीब 14500 फीट की ऊंचाई पर है। ठंड के समय वहाँ जाना लगभग नामुमकिन है। हम गरमी में गए इसलिए गनीमत थी। सारपास लेक तक जाने में करीब 4 दिन लगते हैं। आप बस अपने पीठ पर अपना sack उठाए चलते जाते हैं और बस चलते ही जाते हैं।
हमारे समूह 40 लोगों का था। देश के अलग अलग भागों से, एक दूसरे से बातें करते जान पहचान बढाते कब पहला दिन बीता पता ही नहीं चला। हमारा 40 का group जैसे अली बाबा और चालिस चोर की कहानी जैसा था।
पहले दिन हमने बड़ा मज़ा किया। एक दूसरे से परिचय बढ़ाने के अलावा हमने rock climbing और rappelling भी की। हर व्यक्ति के उसके खासियत के अनुसार उसका nick name भी रखा जैसे deadly, marcky, बुलबुल इत्यादि। बड़े मज़े से हम कसौल घूमने गए और बड़े ही विचित्र नज़ारे देखे। वहाँ के जर्मन बेकरी से cake भी खाया।
तीसरे दिन हम बड़े जोश खरोश से अपने destiny की तरफ चल पड़े। इस उत्साह और थोड़े से डर के साथ की आगे क्या होने वाला है। मैंने दीदी से जिन्होने कई बार इतने लंबे और कठिन trek किए हैं, से सारपास के बारे में बहुत कुछ सुना था। सारपास सबसे खतरनाक trekking में से है ऐसा सुना था।
अगले दिन बस की छत पर चढ़ सैर करने में हमे बड़ा मज़ा आया। एक तरफ लंबा चौड़ा पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी लंबी खाई। हमारे साथ उस बस के अलावा वहाँ की नदी भी साथ यात्रा करती दिख रही थी। जहां जहां सड़क मुड़ती नदी हमारे साथ हो लेती। कहती “चलो थोड़ी दूर तुम्हारा साथ देती हूँ”। बड़ा ही रोमांचक नज़ारा था। जैसे पहाड़ का पत्थर हमारे पास आता हम ज़ोर से अलग अलग आवाज़ निकाल एक दूसरे को चेताते। की भाई देखान सैर का मज़ा लेते हुये अपना सर ही मत तुड़वा लेना। नारे लगते, हो हल्ला करते और बस की छत की सैर का मज़ा ले रहे थे। एक जनाब ने अजीब सा नारा बनाया जिसे उतनी ही बुरी तरह नकार भी दिया गया। नारा था “रिम झिम – 26 सारपास है जाना”। अंत में बहुत से common नारों के साथ हमारा slogan था “ SP – 26 सारपास है ख़्वाहिश ”।
वैसे तो ये पूरा ट्रेक बड़ा खास था पर तीन घटनाएँ जो मुझे बेहद खास हैं और जिन्हे मैं भूल नहीं सकती यहाँ लिखती हूँ।
पहले ही दिन की बात है। हमने एक पहाड़ी के नीचे से अपनी Arabian nights की यात्रा शुरू की। नज़ारा देखने ही लायक था पर हमारा गाइड बिना इधर उधर देखे तेज़ी से मंज़िल की ओर बढ़ रहा था।, तो किसी भी जगह हम ज़्यादा देर तक रुक नज़ारों को निहार नहीं सकते थे। हमें आगे जाना ही पड़ता। शाम से पहले ही हम पहले camp पर पहुँच गए। हमारे साथ एक जनाब थे जो एक लंबा और बड़ा bag लिए हमारे साथ आए थे। रात हुई, camp fire के बाद वो बैग खुला तो उस अंधेरी रात में भी हमें आग की हल्की रौशनी में दिखा “अरे ये तो telescope है ” मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। अब तो बड़ा मज़ा आयेगा मैंने सोचा। उसने वो telescope fix किया। उस रात हमने न जाने कितने ही प्रकार के तारे और गृह बड़े पास से देखे। उसने व्यक्ति ने आसमान के सारे तारे हमारी झोली में जैसे डाल दिये हों और कहे की देखो कितने प्रकार और खूबियों के हैं ये। अलग अलग आकार के टिमटिमाते तारे बड़े ही धीर और गंभीर प्रतीत हो रहे थे उस दूरबीन से। खाली आंखो से आसमान को देखो, तो सारा आकाश जैसे तारों से टिमटिमाती हुई अलादीन की कहानी कि वो काली रात लग रही थी। मैंने सोचा यह नज़ारा तो मैंने अपने गाँव के प्रदूषण रहित घर से भी नहीं देखा है। चारों तरफ आकाश में तारे जैसे गजगजाए हुये थे। ऐसा लग रहा था जैसे ब्रह्माण्ड के सारे तारे उस आकाश में जहां तक हमारी नज़र जा रही थी, में सिमटना चाह हरे हों। उस रात हम बड़े देर से सोये। तारों के नीचे लेटे ठंड में ठिठुरते हुये आखिरकार हम अपने अपने tent में sleeping bags में धंस गए।
यहाँ चौथे दिन की बात बताती हूँ। करीब 10 की॰ मी॰ चले होंगे हम उस दिन। जैसे ही सारे दिन की सैर कर हम अपने camp पहुंचे। खाना खाया और बुरी तरह थके होने के कारण हम पहले की अपेक्षा जल्दी ही सो गए। आधी रात मुझे सपना आया (मुझे अच्छे से याद है) सपने में मेरा और दीदी का pet “तूफान” मेरा माथा अपनी ठंडी जीभ से चाट रहा था। फिर अचानक ऐसा लगा जैसे कोई छोटा सा पैर मेरे सर पर अपना पैर रख बड़े मज़े में उधम चौकड़ी मचा रहा हो। जब दूसरी बार ऐसा ही हुआ तो मेरी चीख निकाल गई। “आआआ” अपनी आधी नींद में
मैं ज़ोरों से चिल्लाई। मेरी बगल में सोई दीदी और बाकी के लोग भी उठ गए। उस छोटे से tent में हड़कंप मच गया। दीदी ने गुस्से में पूछा “क्या हुआ” मैंने कहा “पता नहीं, कुछ है जो मेरे सर पर अपना पैर रख रहा है”। टॉर्च जलाया तो देखा जनाब चूहे मेरे ही बैग पर बैठे मेरी ही टिफ़िन में पता नहीं क्या खोजते हुये मेरी तरफ चोंक कर देखने लगे। जनाब की आँखों में तो नहीं पर मेरी आँखों में उसने ज़रूर डर को देख लिया होगा। वे फुदकते फुदकते अपनी राह मस्तमौला चाल से नीचे उतरे और चल दिये। दीदी ने बड़े आराम से दुबारा सोते हुये कहा “ओह चूहा है, ज़रूर तुम्हारे टिफ़िन को देखने आया होगा”। मैंने सोचा “मेरे ही क्यों, किसी और के टिफ़िन में मुह मारे कमबख़्त ”। एक दूसरी लड़की ने आधी नींद में कहा “ सो जाओ, अपना सर sleeping bag के अंदर रख लेना”। हुंह, जैसे मेरा दम न घुट जाए उसमें। सोचते हुये मेरी पूरी रात वैसे ही टॉर्च जलाए बीती। रात भर जागी होने के कारण मैं सुबह जल्दी उठ गई। बाहर आई तो देखा कुछ दूर वहाँ के स्थानीय निवासी एक छोटी सी झोपड़ी बनाए आग ताप रहे थे। उनके पास मैं गई और बैठ गई। मैंने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और उन्होने मेरी तरफ। उन्होने चाय बनाई। इतनी मीठी की चीनी को भी मात दे जाए पर मैंने किसी तरह पी ही ली। उनसे बात करते मैंने उन्हे बड़ी ही उत्सुकता सेरात की घटना बताई। एक महिला जो वहीं बैठी चाय बना रही थी कहा “सोच कर चलिये की गणेश जी के चूहे आए थे आशीर्वाद ले कर, और आपके सर पर अपना आशीर्वाद दे कर चले गए”। मैं आवक उन्हे देखती रही। मेरी जान निकाल गई थी (या वैसा ही कुछ) और उन्हे आशीर्वाद सूझ रही है।
जैसे ही मैं चाय पी कर उठी उनमें से एक बूढ़े ने बड़े प्यार से आशीर्वाद देते हुये मुझे पाँच रु॰ दिये कहा मेरे पास बस यही देने को है आप आई और हमारे पास आ कर बैठी, अच्छा लगा।
मैंने न न कहते हुये उस पाँच के नोट को ले लिया। वह नोट अभी भी मेरे पास रखा है। मेरे पर्स में रखा जब भी मैं उसे खोलती हूँ एक नज़र उठा कर देख लेता है।
तीसरी और आखिरी घटना मुझे ही नहीं मेरे सभी साथियों की जान निकालने वाली है।
आठवें दिन हम सारपास lake के लिए निकले। यहाँ से इस जगह से बर्फ शुरू हो जाती है गनीमत थी, हम गर्मियों के मौसम में वहाँ पहुंचे । हमने चढ़ना शुरू किया आसमान साफ, सूरज की ताज़ा गरमा गरम किरणे सुबह की ठंड में बड़ी प्यारी लग रही थी। हम बड़े जोश के साथ आगे बढ़ रहे थे। जब बर्फ शुरू हुई हमने बड़ी मस्ती की। बर्फ के गोलों का युद्ध देखने लायक था। थोड़ी ही देर हुई थी की एक guide आया और जल्दी चलते को कहने लगा। हमें समझ नहीं आया पर हामी भर हम भी साथ हो लिए अब बर्फ के गोलों के कारण हमारे दस्तानों में भी नमी आने लगी थी।
आगे बढ़े तो बर्फ से ढका सपाट मैदान सामने। मैंने सोचा “हमें इसपर जाना है , इसका तो कहीं अंत ही नहीं दिखता ” मन में अचानक एक हल्का सा डर पनपा। पर मन को समझा मैं आगे बढ़ी। मेरे सामने 1 – 2 लोग ही थे।थोड़ा आगे चले तो एक संकरी बर्फ ही की पगडंडी दिखाई दी। एक तरफ बर्फ ही का पहाड़ और दूसरी ओर बर्फ ही की खाई। पीछे देखना मुमकिन नहीं दिख रहा था। उस सँकरे रास्ते पर पीछे मुड़ना मतलब मेहनत का काम जान पड़ता था। उस ढलान पर हमें एक guide ने surfing भी कर दिखाई फर्क सिर्फ इतना था की surfing boat नदारद थी। हमें एक जगह ज़्यादा देर पैर रखने से मना किया गया था इस कारण लगातार चलना पड़ रहा था। जल्दी चलने को कह वो अपनी चाल आगे बढ़ गया। पाँच मिनट भी नहीं हुये थे की आकाश में जिन्न की तरह मुह बाए हमारी तरफ काला घना बादल आता दिखाई दिया। मेरे साथ 7 – 8 लोगों का ग्रुप आगे बढ़ रहा था। बाकी के लोग पीछे छूटे हुये थे। ठंड के मारे पहले ही हम जमें जा रहे थे, अब तो चेहरा भी जमने लगा था। तभी पीछे से आवाज़ आई । सुन हम चौंक पड़े पीछे मुड कर देखने लगे। “आआआ ई ई ई ई” Spidy (सागर) बर्फ की ढलान पर तेज़ी से गिरता दिखा। करीब तीस फीट दूर ही एक खाई देख हमारी आवाज़ अटक गई। डर से हम बस देखते ही रह गए उसे खाई की तरफ गिरते हुये। गनीमत थी की एक गाइड super hero की तरह कूदता फाँदता वहाँ गया और उसे कोलार से पकड़ खींच लिया। सागर के माँ पिता की तो पता नहीं क्या हालत थी। वो बस देखते ही रहे। पाँच मिनट ही बीता होगा की एक और आवाज़ आई ‘आ आ आ ’ इस बार कोई और था हमने देखने की ज़हमत नहीं उठाई बस आगे बढ़ते गए। बाद में पता चला 2 – 3 और लोगों ने sliding का मज़ा चखा था। खैर ये उन guides के लिए रोज़ का काम था।
हम आगे बढ़े और चलते ही चले गए। रास्ता जैसे खतम ही नहीं हो रहा था। आगे देखो तो रूई सा सफ़ेद बर्फ दिखता और हर एक कदम के साथ डर रहता। थोड़ी देर में देखा जो हमारे साथ के गाइड थे वो भी नदारद। अपनी नज़रे इधर उधर कर हमारे super hero को ढूंदते हुये अचानक सामने देखा तो एक घुमाव के बाद दूसरी तरफ का रास्ता बंद , सोचा “ये कैसे हो गया, ये संभव नहीं कुछ गड़बड़ है” लगभग दस फीट की एक steep चढ़ाई और उसपर से एक ओर खाई। न जाने वह देख मैं शांत हो गई मन शून्य, खाली, बस मैं देखती रही। मन में एक डर आया “अब कुछ नहीं हो सकता, मैं ये नहीं कर सकती, अगर मैंने कोशिश की तो मैं ज़िंदा नहीं बचूँगी, खाई में गिर पड़ूँगी । पता नहीं कमबख्त इस super hero को भी अभी ही गायब होना था”। मेरे पीछे के लड़के एकदम शांत हो बस देखते रहे किसी के बोलने की न हिम्मत हुई और न ताकत ही बची थी। नज़रों से तलाशा ऊपर चढ़ने के लिए न कोई टहनी, न कोई पत्थर ही दिखाई दिया जिसे पकड़ मैं ऊपर चढ़ सकूँ। मन शांत होने के साथ हवा और तेज़ हो गई जैसे चेता रही हो “तिना ऊपर न चढ़ना ”। पर वहाँ रुकना संभव न था हमारे पैरों के नीचे की बर्फ पिघलती जा रही थी और अभी भी हमारे गाइड वहाँ से गायब थे। ऊपर चढ़ना ही था नहीं तो वैसे भी हम एक एक कर गिरते , पीछे से आवाज़ आई टीना कोशिश करो हो जाएगा।
मैंने अपनी हिम्मत समेटी और यह सोच जो होगा देखा जाएगा बिना खाई की तफ़र देखे बर्फ ही को पकड़ ऊपर की तरफ खुद को धकेला, और यह क्या अगले ही क्षण मैं ऊपर थी “येयेपीपी ” मेरी खुशी का ठिकाना न था। पहली बार मैंने अपनी हिम्मत की परीक्षा ली थी। पहली बार मुझे पता चला था की मैं खुद को कहाँ तक ले जा सकती हूँ। शायद ज़िंदगी की ऐसी ही घटनाओं से आप खुद को परखते है, खुद की अनगिनत बातों को खोज निकालते हैं जो शायद खुद को ही पता नहीं रहती।